इसी सहरा मे डूबा है मेरी मुहब्बत का दरिया
तेरी आखों मे ढूंढ लूंगा मै मुहब्बत का दरिया
अब तो खुद को बना लिया है पत्थर की मानिंद
जिस रोज भी टूटेगा बहेगा मुहब्बत का दरिया
आग का जलता रहता है, ये जिस्म सुबो शाम
बुझेगी ये आग जब बहेगा मुहब्बत का दरिया
दो रूहों के बीच खिल तो जायेंगे कुछ फूल
मुरझा जायेंगे गर न बहेगा मुहब्बत का दरिया
इंसानियत भी ज़िंदा है, अब तलक भी,शायद
तह मे बहता है कंही न कंही मुहब्बत का दरिया
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------
तेरी आखों मे ढूंढ लूंगा मै मुहब्बत का दरिया
अब तो खुद को बना लिया है पत्थर की मानिंद
जिस रोज भी टूटेगा बहेगा मुहब्बत का दरिया
आग का जलता रहता है, ये जिस्म सुबो शाम
बुझेगी ये आग जब बहेगा मुहब्बत का दरिया
दो रूहों के बीच खिल तो जायेंगे कुछ फूल
मुरझा जायेंगे गर न बहेगा मुहब्बत का दरिया
इंसानियत भी ज़िंदा है, अब तलक भी,शायद
तह मे बहता है कंही न कंही मुहब्बत का दरिया
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------
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