एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday, 5 October 2012
रोज़ तंज़ कसते थे
रोज़ तंज़ कसते थे 'तुम मुझपे मरते हो तो मर क्यूँ नहीं जाते"
हमने मर के दिखाया तो बोले ये भी तुम्हारी कोई शरारत होगी
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