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Sunday 21 October 2012

चांद मुझको जलता हुआ लगे


चांद मुझको जलता हुआ लगे
जिस्म अपना उबलता हुआ लगे

सदियों की जमी बर्फ हो जैसे
आज कुछ पिघलता हुआ लगे

आसमा से टूट कर सितारा
जमीन से मिलता हुआ लगे

मौसम है खिजां का, मगर,
फूल कोई  खिलता हुआ लगे

जो दिल उदास रहा करता था
आज क्यूं मचलता हुआ लगे

मुकेश इलाहाबादी ------------

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