वो बुलबुल सा चहकना
और फुदकना भा गया
हमारा भी उस मासूम पे
जाने कब दिल आ गया
कच्ची अमिया खाना और
वो खिलखिलाना भा गया
चाय थमा कर हाथो मे,
फिर भाग जाना भा गया
अपनी मॉ के पीछे पीछे ,
उसका मंदिर जाना भा गया
सखियों संग धौल - धप्पा
घर मे चुप रहना भा गया
दो चुटिया और लाल चुन्नी पे
छीटदार कुर्ता पहनना भा गया
तुम कैसी हो पूछा तो सिर्फ
उसका सर हिलाना भा गया
यूँ दरवाजे के पीछे से उसका,
मुझको बेवजह तकना भा गया
मुकेश इलाहाबादी --------------
और फुदकना भा गया
हमारा भी उस मासूम पे
जाने कब दिल आ गया
कच्ची अमिया खाना और
वो खिलखिलाना भा गया
चाय थमा कर हाथो मे,
फिर भाग जाना भा गया
अपनी मॉ के पीछे पीछे ,
उसका मंदिर जाना भा गया
सखियों संग धौल - धप्पा
घर मे चुप रहना भा गया
दो चुटिया और लाल चुन्नी पे
छीटदार कुर्ता पहनना भा गया
तुम कैसी हो पूछा तो सिर्फ
उसका सर हिलाना भा गया
यूँ दरवाजे के पीछे से उसका,
मुझको बेवजह तकना भा गया
मुकेश इलाहाबादी --------------
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