एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Wednesday, 3 October 2012
बाज़ार के आईने भी अब झूठ बोलते हैं, और
बाज़ार के आईने भी अब झूठ बोलते हैं, और
सच,आप अपनी नज़रों में देखने ही नहीं देते
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