एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Tuesday, 30 October 2012
कुछ मजबूरियां रही होंगी जो साथ रह गया
कुछ मजबूरियां रही होंगी जो साथ रह गया
वर्ना वो शख्श तो आया ही था लौट जाने को
अब हम भी शिकायत नहीं करते ज़िन्दगी से
यूँ ही बहुत कुछ होता है अक्शर, भूल जाने को
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
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