एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 1 November 2012
जो खुशबू ज़माने भर को हो मयस्सर न उसकी आस रखते हैं
जो खुशबू ज़माने भर को हो मयस्सर न उसकी आस रखते हैं
हम ज़रा शाही मिजाज़ के ठहरे, सबसे अलग चाह रखते हैं
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------------
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