चेहरे पे थकान दिखती है
उम्र ढलान पे लगती है
यहाँ सभी हो गए व्यापारी
घर - घर दूकान सजती है
दिन भर की मजूरी के बाद,
दो रोटी औ प्याज मिलती है
हाड तोड़ मेहनत करता हूँ
रात नश - नश तडकती है
बारिस से कैसे बचूं ?मुकेश
छत मेरी अब भी टपकती है
मुकेश इलाहाबादी ----------
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