पतझड़ ने छीन ली, सारी जवानियाँ,
दरख़्त पे रह गयी, फक्त सूखे डालियाँ
कांपती हैं कलियाँ, अब गुलफरोश से,
जाने कब बिक जाए, उनकी शोखियाँ
चराग़ भी बिक गए, अंधेरों के हाथ मे,,
रोशनी दिखायेगी, बादल की बिजलियाँ
ख़त तुम्हारे सारे ,करके आग के हवाले
यूँ हमने मिटा दी , सारी निशानियाँ
कागजी फूल खिला के, सोचते हैं लोग
गुलशन में उनके, उडेंगी तितलियाँ
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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