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Monday, 25 February 2013

तुमने ज़ुल्फ़ को संवारा होगा

 

तुमने ज़ुल्फ़ को संवारा होगा
आइना भी मचल गया होगा

हवाएं भी तो मनचली  ठहरी
लटों को बिखरा दिया होगा

दरीचे पे तुम्हे खड़ा देख कर
राही दर पे ठिठक गया होगा

फूल की रजामंदी  थी  तभी
भँवरे ने चुम्बन लिया होगा

न उम्मीद होकर ही उसने
तुमसे किनारा किया होगा

मुकेश इलाहाबादी --------

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