ले गए हो मुझसे मेरी ज़िन्दगी छीन के
ले जाओ तुम मेरी अब यादें भी छीन के
छीना है तुमने मेरे होठो से मेरा जाम
ले जाओ अब ये तिश्नगी भी छीन के
सब हंस रहे हैं मेरी उरियानियाँ देख के
अच्छा नहीं किया मेरी तीरगी छीन के
तूफाँ के जोर ने बुझा दिए सब चराग
हवा खुश हो रही है रोशनी छीन के
साहिल हूँ मेरी बाहों मे बह रही थी
ले गया समंदर मेरी नदी छीन के
मुकेश इलाहाबादी -----------------
No comments:
Post a Comment