एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Saturday, 9 March 2013
क़तरा ऐ आब सा फिसलती रही
क़तरा ऐ आब सा फिसलती रही
ठहरती ही नहीं नज़र तेरे शीशा ऐ बदन पर
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
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