रंग और मुल्क देख कर नहीं होती
मुहब्बत की कोई सरहद नही होती
तमाम पहरे लगा रखे हो जमाने ने
मुहब्बत हो जाती है खबर नही होती
होती है लम्बी कयामत तक अक्सर
शबे हिज्र की जल्दी सहर नही होती
ये आग का दरिया है झुलस जाओगे
मुहब्बत पानी की नहर नही होती
कुर्बां हो जाएँ जिस्मो जाँ व दौलत से
मुकेश मुहब्बत की कोई हद नहीं होती
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
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