जिन बहारों से हमने भेजा पैगाम आपको
उन हवाओं को देके हवा अपने आँचल की
उजाड़ा था तुमने आशियाँ हमारा शौक मे
अब कहते हो 'लिख - लिख के हमारा नाम
तुमने ज़िन्दगी गुज़ार दी मेरे ही नाम से ,,
चलो इस बार भी हम ऐतबार कर लेते हैं
तुम्हारे ही हाथो फिर फिर उजाड़ जाने को
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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