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Saturday, 6 April 2013

महकी महकी रातें हैं बहके बहके दिन

 
महकी महकी रातें हैं बहके बहके दिन
बोली तेरी सुन कर हम चहके सारे दिन

आ जाओ सोंधी - सोंधी आम की बगिया
फिर खट मिट्टी अमियाँ चुह्कें सारे दिन

बरखा बीती - रोते रोते जाड़ा बीता तनहा
अब तो आ जा गोरी क्यूँ दहकें सारे दिन

कँवल सरीखी तेरी आखें चम्पा तेरा रूप
आ जाओ फिर मिल के महकें सारे दिन

थोड़ी मान मनौवव्ल छीना झपटी फिर
हम बारी बारी गुस्से मे ठुनकें सारे दिन

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

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