महकी महकी रातें हैं बहके बहके दिन
बोली तेरी सुन कर हम चहके सारे दिन
आ जाओ सोंधी - सोंधी आम की बगिया
फिर खट मिट्टी अमियाँ चुह्कें सारे दिन
बरखा बीती - रोते रोते जाड़ा बीता तनहा
अब तो आ जा गोरी क्यूँ दहकें सारे दिन
कँवल सरीखी तेरी आखें चम्पा तेरा रूप
आ जाओ फिर मिल के महकें सारे दिन
थोड़ी मान मनौवव्ल छीना झपटी फिर
हम बारी बारी गुस्से मे ठुनकें सारे दिन
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------
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