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Saturday, 31 August 2013

दुनिया अजब झमेला है

दुनिया अजब झमेला है
देखो रंग बिरंगा मेला है

मिल जुल कर रह ले तू
ये चार दिनो का मेला है

जिसने सच को जाना है
उसने हंस के खेला है

आगे बढ़ने की चाहत मे
कितना तो रेलम रेला है

इक दिन गल जायेगा ते
तन तो माटी का ढेला है

मुकेष इलाहाबादी .....

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