दुनिया अजब झमेला है
देखो रंग बिरंगा मेला है
मिल जुल कर रह ले तू
ये चार दिनो का मेला है
जिसने सच को जाना है
उसने हंस के खेला है
आगे बढ़ने की चाहत मे
कितना तो रेलम रेला है
इक दिन गल जायेगा ते
तन तो माटी का ढेला है
मुकेष इलाहाबादी .....
देखो रंग बिरंगा मेला है
मिल जुल कर रह ले तू
ये चार दिनो का मेला है
जिसने सच को जाना है
उसने हंस के खेला है
आगे बढ़ने की चाहत मे
कितना तो रेलम रेला है
इक दिन गल जायेगा ते
तन तो माटी का ढेला है
मुकेष इलाहाबादी .....
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