Pages

Monday 11 November 2013

आफताब से कुछ और नही माँगता हूँ

आफताब से कुछ और नही माँगता हूँ
फक़त अपने हिस्से की धुप चाहता हूँ

शाम से ही शराबखाने मे बैठा ज़रूर हूँ
मगर पैमाने मे अपना ग़म ढालता हूँ

रात जब भी चांदनी बरसे है आँगन मे
वज़ूद पे खामोशी की चादर तानता हूँ

मुकेश राह जब से पकड़ी सच की हमने
हो गया हूँ अकेला कारवां में जानता हूँ

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

No comments:

Post a Comment