जो मौसमी फलों से लदे हैं,
वे शज़र सिर झुकाये खड़े हैं
रेत पे खिची लकीर हैं हम
ज़रा सी हवा से मिट गए हैं
था कदमो तले जिन्हे झुकना
घास के तिनके फिर से खड़े हैं
आहिस्ता - 2 लोग जान लेंगे
अभी तो हम शहर मे नये हैं
जला पायेगी हमे हिज्र की धूप
कि तेरी यादों के साये घने हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------
वे शज़र सिर झुकाये खड़े हैं
रेत पे खिची लकीर हैं हम
ज़रा सी हवा से मिट गए हैं
था कदमो तले जिन्हे झुकना
घास के तिनके फिर से खड़े हैं
आहिस्ता - 2 लोग जान लेंगे
अभी तो हम शहर मे नये हैं
जला पायेगी हमे हिज्र की धूप
कि तेरी यादों के साये घने हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------
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