आग की तासीर देखा
खुदको जला कर देखा
कलंदरी होती है क्या
सबकुछ लुटाकर देखा
टूट जाने की हद तक
खुद को झुककर देखा
वह अपनी ज़िद पे था
बहुत तो मनाकर देखा
मुकेश ने सभी को तो
दर्दे दिल सूनाकर देखा
मुकेश इलाहाबादी ----
खुदको जला कर देखा
कलंदरी होती है क्या
सबकुछ लुटाकर देखा
टूट जाने की हद तक
खुद को झुककर देखा
वह अपनी ज़िद पे था
बहुत तो मनाकर देखा
मुकेश ने सभी को तो
दर्दे दिल सूनाकर देखा
मुकेश इलाहाबादी ----
No comments:
Post a Comment