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Monday 10 March 2014

आग की तासीर देखा

आग की तासीर देखा
खुदको जला कर देखा

कलंदरी होती है क्या
सबकुछ लुटाकर देखा

टूट जाने की हद तक
खुद को झुककर देखा

वह अपनी ज़िद पे था
बहुत तो मनाकर देखा

मुकेश ने सभी को तो
दर्दे दिल सूनाकर देखा

मुकेश इलाहाबादी ----

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