एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Tuesday, 20 May 2014
सोचता हूँ
सोचता हूँ
बन के तराना
तेरे होठों पे गुनगुनाऊँ
बन के सितारा
तेरे आँचल से लिपट जाऊंं
कि ,
ऐ कँवल
तेरे शाख पे
भँवरे सा बैठ जाऊं
वैसे,
अब तो
दिल ने भी
कर दी बग़ावत
अपने सीने से निकल
तेरी धड़कनों में बस जाऊं
मुकेश इलाहाबादी -------
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