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Wednesday 28 May 2014

भले ही मकाँ छोटा रक्खो

भले ही मकाँ छोटा रक्खो
पै दिल अपना बड़ा रक्खो

इतनी तंगख़याली क्यूँ है?
विचार थोड़ा खुला रक्खो

अँधेरे में भटक जाओगे
चराग इक  जला रक्खो

इतनी खुदगर्ज़ी ठीक नहीं
थोड़ी शराफत बचा रक्खो

ख़ुदा औ बुज़ुर्गों के सामने
सर अपना नीचा रक्खो

मुकेश इलाहाबादी --------

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