Pages

Thursday, 29 May 2014

दर्द के आँसू छलक रहे हैं

दर्द के आँसू छलक रहे हैं
अपने अंदर दहक रहे हैं

ऊपर से तो दिखते सख्त
भीतर- भीतर दरक रहे हैं

घर आँगन में सन्नाटा है
छत पे पंछी चहक रहे हैं

ग़म पीकर बैठे दुनिया का
प्यार में तेरे बहक रहे हैं

जूही, बेला, चंपा, हरश्रृंगार
यार की खुशबू,महक रहे हैं

मुकेश इलाहाबादी -----------

No comments:

Post a Comment