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Monday 5 May 2014

रात, मेरी हथेली ;पे

रात,
मेरी हथेली ;पे
उलीच देती है
एक चाँद
और, ढेर सारे तारे
जिनसे मै
प्यार करना चाहता हूँ
मगर
तारे मेरी हथेली से
दूर छिटक जाते हैं
और,,,, चाँद मैरी बाँहो से
बाहर गुलमोहर
मेरी इस बेबसी पर
मुस्कुराता है
तब मै उदास हो कर
रात के आँचल मे
मुँह  ढक कर
सो जाता हूँ
एक सुहानी सुबह के
इंतज़ार में

मुकेश इलाहाबादी ------------

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