Pages

Saturday 24 May 2014

ऐतबार कर के देखा होता

ऐतबार कर के देखा होता
फिर मुझे झूठा कहा होता

फैसला लेने के पहले मेरी
बेगुनाही सुन लिया होता

बेशक रास्ता बदल लेते
मुझे तो बता दिया होता

अग़र कोई शिकायत थी
मुझको तो बताया होता

ग़ज़ल में अपनी कहीं तो
मेरा भी ज़िक्र किया होता


मुकेश इलाहाबादी ------------

No comments:

Post a Comment