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Wednesday 25 June 2014

जब चराग़े रूह जगमगाता है

जब चराग़े रूह जगमगाता है
अन्धेरा मीलों दूर हो जाता है

दिनभर की उदासी खो जाती है
बच्चा जब गोद में मुस्कुराता है

जब पाकीज़गी दिल में होती है
तब खुदा अपना नूर बरसाता है

इंसान बड़ा मग़रूर होता है,उसकी 
जब जेब में सिक्का खनखनाता है 

ये नीली झील है दर्पन ज़मीन का
रात जिसमे चाँद झिलमिलाता है 

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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