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Sunday 22 June 2014

सर पे सूरज और रेत के मंज़र हैं

सर पे सूरज और रेत के मंज़र हैं 
शहर में नीला नहीं सुर्ख समंदर है

फ़िज़ाओं में बादल औ खुशबू नहीं
सिर्फ धूल और आंधी के बवंडर हैं

चमचाती इमारतें तुमको मिलेंगी
दिल ऐ मकाँ मगर सारे खंडहर हैं
 

जब से शेर गायब हुए हैं जंगल से
तब से वहां राजा औ मंत्री बन्दर हैं

सिर्फ मुकेश तबियत का कलंदर है
वर्ना बहुत से मुक़द्दर के सिकंदर हैं

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

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