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Saturday 14 June 2014

सच के साँचे में ढल गया

सच के साँचे में ढल गया
मोम बनकर पिघल गया

ज़माना देखने की चाहत में
यायावर बन निकल गया

गाँव का सच्चा सीधा इन्सां
शहर की हवा में बदल गया

ज़िंदादिली उसकी ऐसी कि
ज़ख्म फूल बन खिल गया

दिल मुकेश का बच्चा था
देखकर चाँद मचल गया

मुकेश इलाहाबादी ----------

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