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Monday 24 November 2014

हम घर फूंक आये, भले सिंकदर तो नही

हम घर फूंक आये, भले सिंकदर तो नही
येे मेरी मस्ती है, मै कोई कलंदर तो नही
मै दरिया हूँ मेरी मौज़ों से तुम खेलो ज़रा
डूबने से मत डरो मै कोई समंदर तो नहीं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

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