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Wednesday, 3 December 2014

तुमने कभी समंदर देखा है ?

सुमी,

तुमने कभी समंदर देखा है ? नही देखा है तो देखना, और ग़ौर से देखना।
ये जो कभी हरा तो कभी नीला गहरा नीला सा समंदर है न, दरअसल से जमीं का आंचल है, लहराता सा हरहराता सा, लुभाता सा। जिसे ज़मी अपने दोनो हांथो से फैलाकर अपनी धूरी पे नाच रही है, लहराती, बलखाती, तब से जब, मै न था तुम न थी ये गांव न था, ये शहर न था, कोई सभ्यता न थी । था तो सिर्फ ये अपनी धुरी पे नाचती ये ज़मी थी, चॉद तारे थे ये मीलो फैला आसमॉ था। और .... उसी आसमॉ में था, लाल सुर्ख जवां और अपनी मस्ती में झूमता सूरज।
और इधर सतरगी यूवा शोख चंचल धरती। यानी जमीं।

उधर सूरज आसमॉ पे नाचता गाता गुनगुनाता, इधर धरती अपनी धुन मे।
और ... एक दिन जब जमी की निगाह इस जवां सूरज पे पडी तो वह इसकी मुहब्बत मे हो गयी।
और, तब से वह रोज रोज अपना आंचल फैला के सूरज का इंतजार करने लगी।

मगर सूरज है कि न जाने किसकी मुहब्ब्त मे पागल हो के रोज अक्खा दिन सुबह होते ही निकल पडता है, चल पडता है। जलता हुआ, सुलगता हुआ, धधकता हुआ।
और फिर .......
सारा दिन जलने के बाद भी धधकने के बाद भी चलने के बाद भी जब उसे अपनी मुहब्ब्त नही मिलती तो सांझ होते ही जमी मे समंदर रुपी इसी आंचल मे छुप जाता है।
धरती भी उसे बडी शिददत से अपने आंचल मे समेट लेती है। अपने पागल प्रेमी को।
मगर जिददी सूरज रात ठंडा हो के आराम कर के फिर अपनी उसी अनाम प्रेमिका को ढूंढने निकल पडता है। मगर ज़मी बिन नाराज हुये या कुछ कहे फिर भी मुस्कुराती रहती है नाचती रहती है सोचती रहती है कि सूरज देखती हूं तुम कितना भटकते हो। एक न एक दिन तो तुम मेरे पास आओगे ही न, या फिर मै ही यूं हीे नाचती गाती तुम तम पहुंच ही जाउंगी और तब तुम मुझे अपनी बाहों मे भर लोगे। और फिर मै तुममय हो जाउंगी।

तो सुमी तुम मुझे भी ऐसा ही एक जलता हुआ पागल सूरज समझो जो आज भी न जाने किस बात की जुस्तजूं मे फिर रहा है। न जाने किस सच की तलाश में फिर रहा है न जाने किस संमंदर के लिये भटक रहा है। जबकि जानता हूं सारे समंदर सारा आकाश सारी क़ायनात तो मेेरे ही अंदर है, तुम्हारे ही अंदर है।
खैर छोडो, तुम सोच रही होगी कि आज फिर मै न जाने कौन सी बहकी बहकी बातें करने लगा। मगर सुमी मै ये बाते इस लिये कह रहा हूं कि हम भी तो अपने अंदर कोई न कोई सूरज लिये दहक रहे हैं फिर रहे हैं न जाने किस की तलाश में जुस्तजूं में।
जब कभी डूब के सोचता हूं तो लगता है तुम ही मेरी जमी हो तुम ही मेरी जुस्तजूं हो तुम ही मेरा आकाश हो तुम ही मेरा पाताल हो तुम भी भूत हो और वर्तमान भी तुम्ही हो और तुम ही मेरी सुमी हो। प्यारी सुमी, अच्छी सुमी, नटखट सुमी सुमझदार सुमी।
सच सुम,ी ये सब कह के मै तुम्हे मसका नही लगा रहा हं। मगर से सब सच है सच है उतना ही सच हे जितना आकाश में तारे हैं जितना सच तुम हो जितना सच मै हूं।
लिहाजा अब तुम वापस आ जाओ और हम नाचें गायें गुनगुनायें। जमी की तरह आफताब की तरह।

तुम्हारा प्रेमी


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