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Saturday 6 December 2014

ये कैसी खामोशी है

ये कैसी खामोशी है
अजब से बेचैनी है

सुबह के मुखड़े पे
ओस की नमी है
देखो सूरज में भी
खूं ज़दा रोशनी है
इन पीले चेहरों पे
छाई मुर्दनगी है 
बाज़ार जाना है पै
जेब में अठन्नी है

मुकेश इलाहाबादी --

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