Pages

Monday 8 December 2014

तेरी आखों में काजल है

तेरी आखों में काजल है
मै समझूँ की बादल है

तेरा लाल दुपट्टा ले उड़ी
हवा कितनी पागल है

इन गोरे - गोरे पांवो में
रुनझुन करती पायल है

तेरी मस्त अदाओं का
पूरा शहर ही क़ायल है

नज़रें तुझसे क्या मिली
दिल मेरा भी घायल है

मुकेश इलाहाबादी ---

No comments:

Post a Comment