जुगनू की रोशनी है
बाकी तो तीरगी है
तुम्हे आब न मिलेगा
यहां रेत् की नदी है
कारवाँ में पीछे हो
रफ़्तार की कमी है
ग़मज़दा आखें हैं ये
इन आखों में नमी है
मुकेश घबरा मत तू
ये इम्तहाँ की घड़ी है
मुकेश इलाहाबादी --
बाकी तो तीरगी है
तुम्हे आब न मिलेगा
यहां रेत् की नदी है
कारवाँ में पीछे हो
रफ़्तार की कमी है
ग़मज़दा आखें हैं ये
इन आखों में नमी है
मुकेश घबरा मत तू
ये इम्तहाँ की घड़ी है
मुकेश इलाहाबादी --
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