लगाये लगती नही, बुझाये बुझती नही
इश्क की आग में, लपटें दिखती नही
रुह और जिस्म दोनो ही जल जाते हैं
ढूंढने निकलो तो राख भी मिलती नही
मुकेश इलाहाबादी ...............
इश्क की आग में, लपटें दिखती नही
रुह और जिस्म दोनो ही जल जाते हैं
ढूंढने निकलो तो राख भी मिलती नही
मुकेश इलाहाबादी ...............
No comments:
Post a Comment