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Sunday 12 April 2015

बिखरा - बिखरा मंज़र और मै

  1. बिखरा - बिखरा मंज़र और मै
    उदास - उदास  शहर  और   मै
    इक लम्हे को  भी आराम नही
    भागता - दौड़ता शहर  और मै
    धूप - पानी , आंधी  सह  चुकी
    उजड़ी - उजड़ी दीवार  और  मै
    स्याह, जान लेवा शब के बाद
    यह ज़र्द - ज़र्द  सहर और  मैँ 
    दूर -दूर तक कोई साहिल नहीं
    यह हरहराता  समंदर और मै

    मुकेश इलाहाबादी -------------

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