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Thursday 11 June 2015

अपने जिस्म के ताबूत मे जिंदा हूं

अपने जिस्म के ताबूत मे जिंदा हूं
देख  तो तू  मै हरहाल मे जिंदा हूं

यादों  का  एक  जंगल छोड गये थे
आज तक उसी बियाबान मे जिंदा हूं

जमाने ने कोई कसर न छोडी पर
मै अपनी खददो-  खाल मे जिंदा हूं 

टूट गया कांच सा वजूद, फिर भी
मुकेश, मै अपनी शान मे जिंदा हूं 

मुकेश इलाहाबादी -------------------

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