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Tuesday, 2 June 2015

नशे मे नही दर्द से बोझिल है ऑखें

नशे   मे नही दर्द से बोझिल है ऑखें
जाने कितने ग़मो से गाफिल हैं ऑखें

यूं देखों तो बडी मासूम सी लगती हैं
ईश्क की साजिश मे शामिल हैं ऑखें

बेवजह दिल को लोग देते हें इल्जाम
हमसे पूछों, कितनी क़ातिल हैं ऑखें

तमाम जज्बातों का दरिया समेटे हुये
आशिक  के लिये तो साहिल हैं ऑखें

मुकेश, जहां चुप हों जायें हैं अल्फाज 
हर वो बात कहने मे काबिल हैं ऑखें


मुकेश इलाहाबादी -------------------

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