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Wednesday 24 June 2015

ज़िंदगी जैसे ठहर गयी हो

ज़िंदगी जैसे ठहर गयी हो
बहती नदी रुक गयी हो 

खिलखिला  के  हसीं थी 
चांदनी  सी बिछ गयी हो

दो बोल मीठे  से उसके
मिश्री  सी  घुल गयी हो

सन्नाटा सुनता हूं, शायद 
उससे कुछ  कह गयी हो

मुकेश तुम चुप हो,  ऐसे
जैसे ज़िदगी लुट गयी हो

मुकेश इलाहाबादी -----

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