Pages

Monday 29 June 2015

खिलखिला के हंसती है

खिलखिला के हंसती है,मुस्कुराना नहीं आता
मासूम इतनी कि सजना संवरना नहीं आता
ईश्क  की  बातें वह समझती नहीं और इधर
हाले दिल हमको भी तो समझाना नहीं आता
हमारी तमाम कमियां एक -२ कर गिना गया
मगर हमको अपनी खूबियां बताना नही आया
 मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

No comments:

Post a Comment