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Tuesday, 14 July 2015

रूठ जाता है फिर ख़ुद ब ख़ुद मान जाता है

रूठ जाता है फिर ख़ुद ब ख़ुद मान जाता है
मुहब्बत कैसे की जाती है उसे खूब आता है

कभी शोखी,कभी गुस्ताख़ी कभी मुस्काना
ईश्क ज़िंदा रहे,वो नुस्खे खूब आजमाता है

मुझको भाता है उसका अंदाज़े फकीराना
बड़े से बड़े दर्दो -ग़म, हंस के टाल जाता है

वो कहता है जिस्म इक फूल ज़िंदगी महक
खिलना महकना और फिर मुरझा जाता है

जो कभी ग़मगीन देखता है वो मुझको, तो
आ कर मुकेश गुदगुदाता है हंसा जाता है

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

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