ग़म तो बहुत सारे हैं बताने को
कोई साथी न मिला सुनाने को
दिले पत्थर पे लकीर खींचा था
लोग तुले हैं उसे भी मिटाने को
इक तो नाव कागज़ की अपनी
लहरें भी लगी हैं उसे डुबाने को
तेरी यादें तेरी बातें तेरा चेहरा
हमें मुद्दतों लगे तुझे भुलाने को
पढ़ लो तुम मेरी किताबे ज़ीस्त
हमारे पास कुछ नहीं छुपाने को
मुकेश इलाहाबादी ----------------
कोई साथी न मिला सुनाने को
दिले पत्थर पे लकीर खींचा था
लोग तुले हैं उसे भी मिटाने को
इक तो नाव कागज़ की अपनी
लहरें भी लगी हैं उसे डुबाने को
तेरी यादें तेरी बातें तेरा चेहरा
हमें मुद्दतों लगे तुझे भुलाने को
पढ़ लो तुम मेरी किताबे ज़ीस्त
हमारे पास कुछ नहीं छुपाने को
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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