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Monday, 10 August 2015

तमाम बहाने हैं मुस्कुराने को

तमाम बहाने हैं मुस्कुराने को 
वर्ना तो ढेरों ग़म हैं बताने को


तुझसे नही तेरे ख्वाब से कहूँगा 
आज की रात नींद में आने को


तुझ बिन नींद तो आने से रही 
दर्द से बोलूंगा लोरी सुनाने को


सावन की रिमझिम बारिस से 
कहूँगा तुमको झूला झूलाने को


मेरा दम निकले इसके पहले,
तुझसे कहूँगा इक बार आने को


मुकेश इलाहाबादी ----------

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