एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday, 18 September 2015
जब मौत के करीब पहुंची
जब मौत के करीब पहुंची
ज़ीस्त मुकाम पे तब पहुंची
धूप ने सोख लिया दरिया
साँझ के बाद शब पहुंची
रात तारे गिन गिन कटी
नींद पलकों पे अब पंहुची
ज़रा याद कर के बता, तू
मिलने वक़्त पे कब पंहुची
मुकेश इलाहाबादी ---------
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