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Sunday 1 November 2015

एक सूनसान घाटी में

भुलाने की
तमाम कोशिशों के बावजूद
लौट आती हैं
तुम्हारी यादें
मुझ तक
हज़ारों हज़ार तरीके से
शायद मै
तब्दील हो चूका हूँ
एक गहरे अंधे कुँए
या फिर
एक सूनसान घाटी में
तुम्हारे जाने के बाद

मुकेश इलाहाबादी ---------

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