Pages

Tuesday 1 December 2015

फिर हुआ सूरज आग का गोला सबेरे सबेरे


फिर हुआ सूरज आग का गोला सबेरे सबेरे
मै भी उठा, फिर से निकल दिया सबेरे सबेरे

उदासियों की धुंध सी बिखरी थी हर सिम्त
तू मुस्कुराई और मै खुश हुआ सबेरे - सबेरे

शब्भर भटकता रहा जाने किस -२ सहरा में
तूने ज़ुल्फ़ झटका बादल बरसा सबेरे-सबेरे 

कल मेरी महफ़िल में तेरा आना क्या  हुआ
फिर हर तरफ हुआ अपना चर्चा सबेरे-सबेरे

रात घर से निकालना महफूज़ नहीं, मुकेश
कल से तू मुझसे मिलने आना सबेरे - सबेरे


मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

No comments:

Post a Comment