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Sunday 27 December 2015

ठोकरों से हम लड़खड़ा क्या गए

ठोकरों से हम लड़खड़ा क्या गए
लोग समझे हम नशे में आ गए

बात हमने हंसने हंसाने की, की
ज़माने वाले हमको ही रुला गए

हम आये थे दास्ताँ अपनी कहने
लोग अपनी ही कहानी सुना गए

मैंने ग़ज़ल में तेरा नाम  लिक्खा
लोग आये हर्फ़ दर हर्फ़ मिटा गए

निकले तो थे हम मैखाने के लिए
मुकेश हम फिर तेरे दर पे आ गए

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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