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Wednesday 16 December 2015

छत पे गुनगुनी धूप सा

सर्द मौसम में
जब
कोहरे की चादर
बदन को लपटे होती है
सच
तब,
तुम्हरी यादें
छत पे गुनगुनी धूप सा
बिछ जाती हैं

मुकेश इलाहबदी --

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