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Wednesday 23 December 2015

रात तुम हँसी थी छत पे

रात
तुम हँसी थी
छत पे 
चाँदनी बिछ गयी थी
और
हरश्रृंगार बरसे थे
अब सुबह
कोहरे को छांट के
तुम्हारी यादों की धूप
बिखरी है जिसकी गुनगुनी धूप में
भीगा है तन बदन मेरा

मुकेश इलाहाबादी -----------

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