Pages

Wednesday 9 December 2015

सुनता हूँ तुम्हे - पूरे प्रण -प्राण से

नदियां, छोड़ देती हैं
उत्तल तरंगो में
बहना

चुप चाप,
बहने लगते हैं
झरने

गड़गड़ाना छोड़ देते हैं
बादल बारिशों के वक़्त

कोयल भूल जाती है
कूकना

झूमना छोड़
शांत हो जाते हैं
गुलमोहर
कचनार,
रजनीगंधा और
महुआ के साथ साथ सभी
पेड़

समाधिस्थ हो जाता है
ये आकाश
तब,
जब, तुम हंसती हो
खिलखिलाती हो
या की गुनगुनाती हो
खुशी से कोई प्रेम गीत

सच,,  तब - तब
सुनती है
तुम्हे पूरी प्रकृति
पूरे ध्यान से

और मै भी
देखता हूँ
सुनता हूँ
तुम्हे - पूरे प्रण -प्राण  से

(सुमी , सच ऐसा ही होता है
जब तुम हंसती हो बोलती हो
खिलखिलाती हो )

मुकेश इलाहाबादी ----

No comments:

Post a Comment