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Wednesday 6 January 2016

कुछ देर चुप रहें और सुने

आओ
कुछ देर
चुप रहें
और सुने
उन शब्दों को
जिसे कहा है
तुम्हारी खामोशी ने
मेरे मौन से

महसूसें
उस
सात्विक स्पर्श को
जो परे है
वासना से
स्त्री - पुरुष के भेद से
पाप -पुण्य से
घृणा और द्वेष से

और कुछ देर
हो जाएं 'हम'
मैं और तुम से
परे हो के 

आओ कुछ देर .....

मुकेश इलाहाबादी -----

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