छत पे सुहब -शाम न टहला करो
अपने बालों को न यूँ बिखेरा करो
चैन उड़ जाता है ज़माने वालों का
इस अदा से तो न मुस्कुराया करो
रोज़ रोज़ कहते हो पर आते नहीं
अगर वादा करते हो,निभाया करो
पिघल जाऊंगा मोम का जिस्म है
आतिशे हिज़्र में न झुलसाया करो
सुना है अकेले में तुम गुनगुनाते हो
कभी तो हमारी ग़ज़ल गाया करो
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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